अभावों की परछाई
आजकल आदमी के साथ
दिन भर रहती है।
भरते-भरते अपना थैला
थककर रात में जब वह सोता है
स्वप्न में दूसरा अभाव होता है।
अभावों की परछाई
आजकल आदमी के साथ
दिन भर रहती है।
भरते-भरते अपना थैला
थककर रात में जब वह सोता है
स्वप्न में दूसरा अभाव होता है।
In just a few words you have captured much meaning. ❤
LikeLiked by 1 person
Thank you very much
LikeLiked by 2 people