बहुत रोए जानकर असलियत
शायद भरम ही ठीक था
मत मुखौटों को उठाओ अब
जानती हूं कत्ल करने वाला –
ईमान का ; मेरा ही मीत था ।
शिनाख्त पैरवी करूं कैसे ?
अनजाने ही मैंने ना जाने –
कितने अपराधों को शह दिए…..।
बहुत रोए जानकर असलियत
शायद भरम ही ठीक था
मत मुखौटों को उठाओ अब
जानती हूं कत्ल करने वाला –
ईमान का ; मेरा ही मीत था ।
शिनाख्त पैरवी करूं कैसे ?
अनजाने ही मैंने ना जाने –
कितने अपराधों को शह दिए…..।