प्राण पपीहा पूछ रहा है
पी कहां – पी कहां . . . .
अतृप्ति , बेचैनी , जिजीविषा बलवती फिर भी
हर रोज मांगना
प्यास फिर भी ,
घन आए लाए नेह जल
किंतु नहीं मिटती प्यास अमर ।
पी – पी कर भी
प्राण पपीहा टेरता रहता
पी कहां – पी कहां ।।
प्राण पपीहा पूछ रहा है
पी कहां – पी कहां . . . .
अतृप्ति , बेचैनी , जिजीविषा बलवती फिर भी
हर रोज मांगना
प्यास फिर भी ,
घन आए लाए नेह जल
किंतु नहीं मिटती प्यास अमर ।
पी – पी कर भी
प्राण पपीहा टेरता रहता
पी कहां – पी कहां ।।