महत्वाकांक्षा का मोती पलता है
निष्ठुरता के सीप में।
सहन नहीं कर पाता
अपने अवरोधों को ;
कत्ल कर देता है उनका
जो उसे खतरे का संशय लगते हैं ।
सफलता के ये कुतुबमीनारें
बनी हैं शोषितों के खून से ,
शाहों के जुनून से ।
“हर सफल यहां भावना का व्यापारी है”।
रेत ही रेत , नेहनिर्झर बह चुका है ।
अर्थ के प्रमाद , उन्माद का नित्य प्रदर्शन!
दिखती है बस-
“मृत संवेदना प्रखर प्रवंचना।”