बहुत डूबा मेरा मन भी
जग की छलनामयी में धारा में
सेमर पुष्प सम यह जग
मुझे छलता रहा; कीर को देख !
हंस पड़ी खुद पर
वह भी मेरी गलती दोहरा रहा ।।
बहुत डूबा मेरा मन भी
जग की छलनामयी में धारा में
सेमर पुष्प सम यह जग
मुझे छलता रहा; कीर को देख !
हंस पड़ी खुद पर
वह भी मेरी गलती दोहरा रहा ।।