वो बात तो झोपड़ी और सच्चाई की करते हैंमगर
कितने झोपड़ों से ताल्लुक रखते हैं?
हमारी सादगी उन्हें गरीबी लगती है।
लोग रंगों की परतों में
सीरत कहां परखते हैं?
झूठ में हम तुम बस
रचे बसे रहते हैं।
वो बात तो झोपड़ी और सच्चाई की करते हैंमगर
कितने झोपड़ों से ताल्लुक रखते हैं?
हमारी सादगी उन्हें गरीबी लगती है।
लोग रंगों की परतों में
सीरत कहां परखते हैं?
झूठ में हम तुम बस
रचे बसे रहते हैं।