ख्वाब ढूंढतें हैं वो रातें अब भी
जो नानी के किस्से कहानियों
में जगा करती थीं।
रात भर जगमगाते थे जुगनू
नीम के पेड़ों के पास
जाने कहां गुम हो गई वो रातें
मगर आंखे अभी भी वो ख्वाब ढूंढ़ती हैं!
बहुत याद आती हैं वो
गांव की पगडंडियां
जो बहुत प्यार से अपने पास बुलाती थीं
हम पर दिल-ओ-जान लुटाती थीं
हम कितने खास ,ये यकीन दिलाती थीं।
उनकी हरियाली की सोंधी महक
केवल प्यार चाहती थी।
बेशकीमती था उनका प्यार !
पर आज हाईवे पर चलतीं हूं
दे रहीं हूं सरपट दौड़ती सड़कों की कीमत!
ये शहर है जनाब यहां हर चीज़
जेब के पैसों से खरीदी जाती है।।
बहुत ही प्यारी कविता लिखी है आपने………
“शहर ने एक रोटी क्या फेंकी, माँ-बाप, गाँव, मकान सब छोड़ गया मैं!”
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Thanks Ashish
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Ashish apne to sabse jabardast interpretation diya.
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Thank you ma’am but ye to jindigi ki haqikat haii
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