जी हां हुजूर! सीख रही हूं
तरीके ब्रांड मार्केट में टिके रहने के
गीत अपने मन के न गाकर
आपकी वाहवाही पर बिछ जाने के।
बाजार का मायातंत्र है
मुनाफे से रिश्ते तौलने का।
सच के पैकेटों में झूठ बेचने का।
तारीफ ही की खातिर
बस झूठ बोलती हूं!
लाइक्स और व्यूज पर
सब कुछ भेंटती हूं।
तारीफ ही की खातिर
बस झूठ बोलती हूं।
इंसानियत है बेबस
रूहानियत लापता है।
पैसों पे हर रोज
जमीर बेचती हूं।
भाटों, दरबारियों की कविता
वाहवाही से ज्यादा कुछ नहीं
युग – युग तक कबीर, तुलसी
मीरा, जायसी, रसखान चलेंगे।
उन जैसी चेतना नहीं हम में
सबको खुश करने की खातिर
बस झूठ बोलती हूं, बस झूठ बोलती हूं।
👏🏻👏🏻👏🏻
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Thank you very much.
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बेहद.ही उम्दा रचना. है😍
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Thank you very much Sushmita ji.💖💖
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Sadly, true in the marketplace and in politics.
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Well said mam.
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जी हां हुज़ूर……👏👏👏👏👏
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