Let the illusion of control, go.

Sometimes we feel that there are certain things, we are unable to control. And we feel sad about it. Instead of feeding upon things we can control, we go on and on about the uncontrollable. This is a primary example of two things- *being hard on yourself *regret. We, humans, have power to control our … Continue reading Let the illusion of control, go.

Relevance

Life's journey of each being is not the same, rather different. Each person, is here to fulfill his destiny, with hurdles that might seem way too overtaking, and situations, where mind doesn't agree with the heart. Sometimes, The situations and problems coming in life shift our mind in such a way, that we forget to … Continue reading Relevance

Freedom

A free life, a free soul, a free mind. The permission to do anything without restrictions, without anyone's opinion to bound your ways and your ideology of life. But is this really what freedom means? A free mind that has the extreme power to establish any source of creativity, that can be negative or positive. … Continue reading Freedom

🎆Happy Deepawali🎆

नमस्कार दोस्तों। इस पावन पर्व पर में आप सबके समक्ष अपनी एक कविता प्रस्तुत करना चाहती हूं:- कपड़े, मिठाई और पटाखे खरीदकर, त्यौहार के लिए तैयार हो जाएं। दुख के अंधेरे दूरकर, खुशियों के दीप जलाएं। दीपावली की आपको हार्दिक शुभकानाएं। नफरत को दिल से दूरकर, परायों को अपना बनाएं। बेझिझक होकर, बिना गम के, … Continue reading 🎆Happy Deepawali🎆

Happy Independence Day!

हे मां भारती शत - शत नमन तुम्हें। उर का हर स्पंदन करे नमन तुम्हें। तेरी गोद मुझे हर जनम मिले ओढूं तेरा बसंती बाना। हे जगवंदिनी शत - शत नमन तुम्हें। राग - द्वेष से परे नेह से भरे हुए अपने पुत्रों को तूने सदा दुलारा। हे तपसिंधुनी शत - शत नमन तुम्हें। रसमयी … Continue reading Happy Independence Day!

रिश्तों की शर्तें

रिश्तों की थी कुछ ऐसी शर्तें जिनको हम अपना न सके । गैरों को भी बनते देखा दोस्त हम अपनों से भी निभा ना सके । आंसू बहा लिये, जी हल्का हो गया गम को फिर भी भुला ना सके । वक्त ने तराशा, ढल गए हम दाग चेहरे से अपने मिटा ना सके । … Continue reading रिश्तों की शर्तें

सूख रही स्याही कविता से……..

कैसे बुनू बिंबों के जाल कैसे खींचू शब्दों के छाल मिथक ढूंढू क्यों अतीतगत दंतकथा क्यों खोजू कालातीत। क्या है यही कलेवर कविता का ? यह जैसे माया रूप हो बनिता का छल लेती है सभ्य जनों को माया बंधन में बांध गई सबको। शब्द फांस नहीं बनते मुझसे भावना है उस दीन के लिए। … Continue reading सूख रही स्याही कविता से……..

मैं कहता सुरझावनहारी

आज मैं आपके समक्ष मनु -स्मृति लेकर आई हूं। जिसमें आक्रांताओं के प्रभाव में हमारे ही पंडितों और पुरोहितों ने इतनी मिलावट कर दी है कि उसे जाति विशेष का पोषक माना जाता है। संस्कृत भाषा के मर्म को जानने के कारण मुझे इस के कथनों में विरोधाभास स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। कारण … Continue reading मैं कहता सुरझावनहारी

सच्चिनंद हीरानंद वात्स्यायन (अज्ञेय)

‘ शेखर एक जीवनी ' , ' नदी के द्वीप ' , ' अपने अपने अजनबी ' , हरी घास पर क्षण भर ’ , ‘ कितनी नावों में कितनी बार ' जैसी प्रमुख कृतियों के रचनाकार सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘ अज्ञेय ' का जन्म 7 मार्च 1911 को उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले में … Continue reading सच्चिनंद हीरानंद वात्स्यायन (अज्ञेय)

बसंत – एक उपहार

प्रकृति के दूत, फिर ले आए उपहार ; बहुत छोटा उपहार पर गहरा प्यार। नव किसलय मंजुल कलियां नई शाखाएं सजी बेलों की , तरह-तरह की चहचहाहट - मेरे खग कुल की , सब में रचा-बसा प्यार गहरा।।

राजे  अपनी रखवाली की

The imitative poet who aims at being popular is not by nature made, nor is his art intended, to please or to affect the rational principle in the soul ; but he will prefer the passionate and fitful temper, which is easily limited.... -Plato राजे अपनी रखवाली की; किला बनाकर रहा; बड़ी- बड़ी फौजें रखीं। … Continue reading राजे  अपनी रखवाली की

हे मां भारती शत—शत नमन तुम्हें

हे मां भारती शत - शत नमन तुम्हें! उर का हर स्पंदन करे नमन तुम्हें! तेरी गोद मुझे हर जनम मिले ओढूं तेरा बसंती बाना। हे जगवंदिनी शत - शत नमन तुम्हें! राग - द्वेष से परे नेह से भरे हुए अपने पुत्रों को तूने सदा दुलारा। हे तपसिंधुनी शत - शत नमन तुम्हें! रसमयी … Continue reading हे मां भारती शत—शत नमन तुम्हें

धर्म कहां है?

मैं पूछती हूं खुद से अक्सर धर्म कहां है ? पूजा , विविध व्रतों , उपवासों में पुरोहित या धर्म गुरुओं के पास नैष्ठिक अनुष्ठानों या कर्मकांडों में उपासना के बिके हुए फूलों में हमारे दिखावटी उसूलों में। नहीं नहीं नहीं धर्म करणीय - अकरणीय उपयुक्त - अनुपयुक्त पर विचार कराने वाला विवेक है । … Continue reading धर्म कहां है?

तारीख

तारीखों का फैशन सा चल पड़ा है जन्म से लेकर मृत्यु तक हर क्षण का मूल्य हम चुकाते रहते हैं। एक तारीख़ का अनुभव क्या कभी दूसरे से मैच करता है? कुछ तारीखों हमें मालामाल करती हैं, वहीं कुछ कंगाल कर जाती हैं कुछ का मलाल हम जीवन भर ढोते हैं। तारीखों का चलन निभाते-निभाते … Continue reading तारीख

प्यार तू तेरी वफा सलामत रहे!

Love for me is divine. It is the hunger of our spirit. I am a follower of Platonic veiw. Platonic love is divine and and spiritual. In other words we can call it as Metaphysical love. Love is a heavenly feeling. प्यार तू तेरी वफा सलामत रहे! हर दिल पर तेरी बस हुकूमत रहे! नफ़रत … Continue reading प्यार तू तेरी वफा सलामत रहे!

It’s the nature’s dance that gives it Life!

Dancing on the wind's rythm are the trees, Their fabulous dance is worth a moment's seize. and dancing so are the branches and vines, Their elegance so thrilling on our minds. They're all dancing like professionals, With same expression as traditionals. The leaves on the trees are dancing insane, On the wind God's melodious strain. … Continue reading It’s the nature’s dance that gives it Life!

सुविचार

Image credit: Google १. “ ख्वाहिशें आजमाइश करती हैं हमारे इरादों की । बुलंदियां मिलती है‌ हौसलों की उड़ानों से। रब भी मेहरबान उन्हीं पर अक्सर ; जिनकी कोशिशें घिसती हैं खुद को तराश के पैमानों पे। ” २. “हम इतने भी बेगैरत नहीं जिंदगी कि तू रूठेगी हम हर रोज मनाएंगे ।” ३. “बीता … Continue reading सुविचार

मैंने उड़ना छोड़ दिया था।

मैंने उड़ना छोड़ दिया था कभी मां के तररने पर तो कभी पापा की बंदिशों पर। पर भूल नहीं पाई उड़ना! जब कभी मौका मिलता अरमान पंख लगाकर उड़ने लगते पाबंदियां मुझ पर चलती हैं मन तो मनमाना ही रहा सदा। हिम्मत भी दुबकी किसी कोने में कबतक रहती?, जरा से मौके पाकर कुलांचे भरने … Continue reading मैंने उड़ना छोड़ दिया था।

National Girl Child Day

“पराया धन मान मानकर इतना पराया किया कि आज धरती पर उतरने से पहले सौ बार सोचती हैं बेटियां ! गुम हो जाएगी दुनिया नहीं बचेंगे कोई रंग गुम हो गई अगर ये तितलियां! अटखेलियां इनकी गुड्डे - गुड़ियों की शादी फिक्रमंद अपने बागबां की सुनहरी धूप में खिलती ये कलियां! मुंडेर पर बैठी चिड़िया … Continue reading National Girl Child Day

नरेन जागो फिर एक बार

आज स्वामी विवेकानंद जी का जन्म दिन है। उनका एक नाम नरेंद्र भी था। विवेक को यदि सदगुरु मिल जाए तो वह चिदानंदस्वरूप हो जाता है। । अपनी एक कविता के माध्यम से मैं उन्हें श्रद्धांजलि दे रही हूं, मां भारती का प्रांगण ऐसे दिव्य प्रसूनो से सदैव सजा रहे। कहते हैं "एक गुणी पुत्र … Continue reading नरेन जागो फिर एक बार

स्वर्गीय अटल जी को उनके जन्मदिवस पर मेरा नमन..

अटल जी आपकी जयंती पर अपको मेरा नमन । आज आप के जैसे व्यक्तित्व की ही आवश्यकता है।आपके कथन और कविता को आपकी भावांजलि का माध्यम बना रहीं हूं- "हार नहीं मानूंगा,रार नहीं ठानूंगा। काल के कपाल पर लिखता हूं -मिटाता हूं, गीत नया गाता हूं।" "आदमी को चाहिए वह जूझे / परिस्थितियों से लड़ें … Continue reading स्वर्गीय अटल जी को उनके जन्मदिवस पर मेरा नमन..

सूख रही स्याही कविता से …..

कैसे बुनू बिंबों के जाल कैसे खींचू शब्दों के छाल मिथक ढूंढू क्यों अतीतगत दंतकथा क्यों खोजू कालातीत। क्या है यही कलेवर कविता का ? यह जैसे माया रूप हो बनिता का छल लेती है सभ्य जनों को माया बंधन में बांध गई सबको। शब्द फांस नहीं बनते मुझसे भावना है उस दीन के लिए। … Continue reading सूख रही स्याही कविता से …..

जिंदगी की यही कहानी है

घर भरा है ऐशो-आराम के साजो-सामान से किंतु कहीं कुछ खाली है; समझ में आता नहीं है क्या असली क्या जाली है? हर वक्त सालती हमको ख्वाहिशें आज यह कल वह चाहिए पूरी जिंदगी की यही कहानी है।

ऐ दोस्त! प्यार थोड़ा सा ही सही

घूरती सी देवदूतों‌ की आंखें हमारी घिनौनी हरकतों पर शायद शर्मिंदा हैं। उम्मीद की किरण अभी थकी नहीं कुछ भरोसा है तुम पर ऐ दोस्त! प्यार थोड़ा सा ही सही लहूलुहान और बेजुबान होकर भी तुझ में और मुझ में जिंदा है। उस खुदा की प्यार भरी दुआ हैं हम नूर से उसके रोशन हैं … Continue reading ऐ दोस्त! प्यार थोड़ा सा ही सही

हम हैं आधुनिक

दूर से आती किसी विदेशी ब्रांड के परफ्यूम की खुशबू चाह जगी देखा तो थी शिखा सजी छोटे टॉप पर टाइट जींस हल्के लिपस्टिक ,मस्कारा के साथ बालों को ढीला बांध लगा ली मैच की बिंदी। बालकनी से झांक -झांक कह रही थी 'स्टुपिड नहीं आया अभी'।; सीढ़ी से उतर रही थी जब - आकुलता … Continue reading हम हैं आधुनिक